महाभारत में मर्यादा

मर्यादाओं के तार-तार होने की महागाथा है महाभारत किन्तु उभय पक्ष के उदात्त चरित्रों की आभा, इस गहन अंधकार में भी दामिनी सी दमक जाती है। सत्ता के मोहपाश में जकड़े महाराज धृतराष्ट्र, उद्दण्ड युवराज दुर्योधन और कुटिल शकुनि वाले कौरव पक्ष में भी कुछ जगमगाते नक्षत्र हैं!

महाभारत युद्ध के 10वें दिन, अर्जुन के रथ पर उनके साथ राजकुमार शिखण्डी भी सवार थे जो पिछले जन्म में काशीराज की पुत्री अम्बा थीं। इस रहस्य से अवगत होने के कारण कौरव पक्ष के प्रधान सेनापति गंगापुत्र देवव्रत भीष्म ने, स्त्री से युद्ध न करने की मर्यादा को मानते हुए शस्त्र रख दिए!

पितामह भीष्म अपने प्रिय अर्जुन के बाणों से बिंधकर शर शैय्या पर पहुँच गए तो दुर्योधन ने आचार्य द्रोण से कौरव सेना का प्रधान सेनापति बनने का आग्रह किया।

प्रसिद्ध तो यही है कि आचार्य द्रोण ने, अपने प्रिय शिष्य अर्जुन सहित किसी पाण्डव का वध नहीं करने की शर्त रखी थी किन्तु कौरव पक्ष का प्रधान सेनापति बनते समय वस्तुत: आचार्य द्रोण ने पाण्डव सेना के प्रधान सेनापति धृष्टद्युम्न का वध नहीं करने की शर्त रखी थी क्योंकि वह जानते थे कि उनके सहपाठी और कभी घनिष्ठ मित्र रह चुके पाञ्चाल नरेश द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न, स्वयं आचार्य द्रोण को ही मारने के लिए यज्ञकुंड की अग्नि से उत्पन्न हुआ है!

जिस द्वापर में अपनी बहन के सद्यजात शिशुओं की निरंतर हत्या का घोर पाप करने वाले नराधम कंस ने योगमाया से यह सुनकर कि ‘तारणहार तो जन्म ले चुका है’ अपने राज्य में सभी नवजात शिशुओं की हत्या का आदेश दे दिया था; उसी युग में आचार्य द्रोण का यह आचरण मर्यादा का सर्वोच्च मानदण्ड है!

युद्ध के पंद्रहवें दिन जब ध्रुव स्तम्भ सी प्रतिष्ठित सत्यनिष्ठा वाले धर्मराज युधिष्ठिर के ‘नरो वा कुंजरो’ वाले अर्धसत्य पर विश्वास कर, प्रिय पुत्र अश्वत्थामा की कथित मृत्यु के शोक से ग्रस्त होकर, शस्त्र त्याग कर धरती पर बैठे परशुराम शिष्य द्रोण का, धृष्टद्युम्न ने शिरोच्छेद कर दिया तो आजीवन सूत-पूत्र के उपालम्भ का दंश झेलने वाले सूर्यपुत्र अंगराज कर्ण कौरव सेना के तीसरे सेनापति हुए।

दानवीर, परशुराम शिष्य महारथी कर्ण के चरित्र चित्रण के लिए तो भगवान भास्कर की रश्मियों का ही आश्रय लेना होगा! इसके उपरांत भी यह संदेह शेष रहेगा कि कुंती की कोख से कुरुक्षेत्र की रणभूमि में नि:शस्त्र और रथहीन अवस्था में मृत्यु के बीच कर्ण की पीड़ा का कोई पक्ष अप्रकाशित रह गया हो!

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